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दार-ए-सलाम, टांझानिया मध्ये श्री छत्रपती शिवाजी महाराजांची ३९४वी जयंती

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  दि. 18 फेब्रुवारी 2024, शनिवार दार-एस-सलाम , टांझानिया , पूर्व आफ्रिका महाराष्ट्र मंडळ टांझानियाच्या बॅनरखाली हिंदुहृदयसम्राट श्री छत्रपती शिवाजी महाराज यांची ३९४ वी जयंती दार-ए-सलाम येथील सनातन धर्म सभेच्या लक्ष्मी नारायण मंदिराच्या सभागृहात मोठ्या थाटामाटात , उत्साहात आणि अभिमानाने साजरी करण्यात आली. महाराजांच्या पुतळ्याची रॅली (मिरवणूक) काढून या उत्सवाचे आयोजन करण्यात आले होते. यासोबतच बाळ शिवाजी आपल्या दोन मावळ्यांसह घोड्यावर स्वार होऊन या रॅलीच्या वैभवात भर घालत होते. या रॅलीत महाराष्ट्र मंडळाच्या महिलांनी पारंपरिक वेशभूषा करून शिवाजी महाराजांच्या पुतळ्यासमोर लेझीम नृत्य केले तर पुरुषांनी जय शिवाजी , जय भवानीचा जयघोष करत संपूर्ण वातावरण उत्साहात भरून काढले. ही मिरवणूक दोन तास चालली , मंदिराच्या मुख्य दरवाजातून मार्गक्रमण करून , सीटी सेंटरला प्रदक्षिणा घालत , मंदिराच्या मुख्य दरवाजापाशी येऊन संपली. या कार्यक्रमाचे प्रमुख पाहुणे चार्ज द अफेयर्स (वर्तमान) भारतीय उच्चायुक्त श्री मनोज वर्मा आणि त्यांच्या पत्नी पूनम वर्मा होते , त्यांच्यासमवेत स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्राच्या

श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की ३९४ वी जयंती दार-ए-सलाम, तंज़ानिया में

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  श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की ३९४ वी जयंती दार-ए-सलाम, तंज़ानिया में दि. १८ फरवरी ,  २०२४ ,  शनिवार दार-ए-सलाम ,  तंज़ानिया ,  पूर्वी अफ्रिका महाराष्ट्र मंडल तंज़ानिया के बैनर तले हिंदू हृदय सम्राट श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की ३९४ वी जयंती दार-ए-सलाम में स्थित सनातन धर्म सभा के लक्ष्मी नारायण मंदिर के सभागृह में बडी धूमधाम , अतिउत्साह और गौरव के साथ मनाई गई। इस महोत्सव का आयोजन महाराज की प्रतिमा के साथ रैली (जुलूस) निकालकर किया गया। उसी के साथ घोड़े पर सवार बाल शिवाजी अपने दो मावळों के साथ इस रैली की शान को बढ़ा रहे थे। इस रैली में महाराष्ट्र मंडल के स्त्रियों ने पारंम्परिक वेश भूषा पहन कर शिवाजी महाराज की प्रतिमा के आगे लेझिम नृत्य किया और पुरुषों ने जय शिवाजी , जय भवानी का जयघोष लगाकर पुरा वातावरण जोश से भर दिया था। यह यात्रा पूरे दो घंटे चली जो मंदिर के मुख्य द्वार से होती हुई सीटी सेंटर का चक्कर लगा कर वापस मंदिर के मुख्य द्वार पर आकर समाप्त हुई। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि चार्ज द अफैयर्स (कार्यकरणी) भारतीय उच्चायुक्त श्री मनोज वर्मा और उनकी श्रीमती पूनम वर्मा थे जिनके साथ स्वामी

डॉ. रामदरश मिश्र की साहित्यिक जीवन यात्रा

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  डॉ. रामदरश मिश्र की साहित्यिक जीवन यात्रा जिनके साहित्य में ग्रामीण भारत की समस्याएँ , अपनो के दर्द , सामंतीय आचरण , दरिद्रता , गरीबी , मान-अपमान , अपने अहम पर जीता समुदाय और भूख से विवश होते दलित और वंचित समाज का दर्शन होता है ऐसे साहित्यकार की पाठनीयता कभी आँखों से ओझल नहीं हो सकती। इनकी रचनाओं में भारतीय देहात का महासागर होता है और एक विश्वसनीय सुपरिचित आंदोलन तैयार होता है जो समय के गुजरे शोर-शराबे , अनुभव , बोध और रुपबंध के स्तर पर वैविध्यपूर्ण विधाओ को रचनात्मकता का रूप देकर साहित्यिक जगत में समृद्ध करते हैं। इनको महान साहित्यकार रेणू और प्रेमचंद के बाद की पीढी के रचनाकार के ख्याति प्राप्त है। हम बात कर रहे हैं हिन्दी जगत के सुप्रसिद्घ साहित्यकार डॉ रामदरश मिश्र जी की। अपने उम्र की ९९ वर्ष के पड़ाव के बाद भी मिश्र जी का व्यक्तित्व तेजोमय और वाणी में संघर्ष का ओज दिखाई पड़ता है। डॉ॰ रामदरश मिश्र का जन्म १५ अगस्त १९२४ को गोरखपुर के कछार जिले के अंचल प्रांत के डुमरी गाँव में हुआ। उस वक्त उनका गाँव पिछडे गांवों की सूची में आता था। यह गाँव राप्ती और गौरी नदी के बीच स्थित है इसलिए